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काम ने मुझे पहचान दी: हेमा परगई

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“हितेश, मेरे बड़ा बेटा, कबाड़ी बनना चाहता हैं,” 38 वर्षीय हेमा परगाई गर्व से मुस्कुराते हुए बताती हैं।

हम हेमा से भीमताल में स्थित उनके गृह-कार्यशाला में मिले, जहां उनके कर्मचारी भीमताल, रामगढ़, धारी, मुक्तेश्वर और पहाड़ के अन्य स्थानों से  रद्दी माल लाते हैं और फिर रीसाइक्लिंग के लिए बड़े रद्दी व्यापारियों को बेचने से पहले धातुओं और गैर-धातुओं को अलग करते हैं।

हेमा, जिन्होंने छह साल पहले इस व्यवसाय की स्थापना की थी, एक सख्त बॉस है। उन्हें होना भी चाहिए क्योंकि वह पूरे कुमाऊँ क्षेत्र में शायद एकमात्र महिला हैं जो कबाड़ के व्यवसाय से जुड़ी हैं।

जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने अपना व्यवसाय कैसे शुरू किया, तो वह कहती हैं, “जब मेरे पति — जो अब बंद हो चुके एपिक वाटर प्यूरीफायर में ऑपरेटर थे— की मृत्यु हुई तो हमारे सामने अपने अस्तित्व संकट था। जब वह जीवित थे तब भी हमारे पास कभी भी पैसा नहीं था इसीलिए पारिवारिक आय को बढ़ाने के लिए ऊपर किराए पर रहने वाले छात्रों के बर्तन साफ करने और उनके लिए खाना बनाने का काम करती थी। चूँकि बच्चे छोटे थे, मुझे ही कुछ करना था। हितेश के सुझाव पर हमने 2000 रुपये के कुल निवेश के साथ कबाड़ का व्यवसाय शुरू किया। ”

इस व्यवसाय के शुरुआती दिन कठिन थे। “परिवार के सदस्य और अन्य लोग पूछते थे कि एक महिला और ब्राह्मण होने के नाते मैं यह व्यवसाय कैसे कर सकती हूँ? मुझे भी बुरा लगता था। उन दिनों हमारी भंडारण क्षमता सीमित थी जिसके कारण कभी-कभी कबाड़ को हमें घर में रखना पड़ता था। यह देखकर मुझे गुस्सा भी आता था। हालांकि, यह बेचा जाएगा जिससे हमें कुछ पैसे मिलेंगे ऐसा सोचने पर संतोष होता था, ”हेमा याद करते हुए बताती हैं।

अनुभव की कमी और यह सीखने से पहले कि कैसे कबाड़ चुनना है और कहाँ बेचना है, हेमा ने शुरू में नुकसान उठाया। फिर उसने धीरे-धीरे सीखा। इस व्यवसाय से अर्जित धन के कारण ही उसने अपने दोनों बेटों को शिक्षित किया। आज रितेश, उनका छोटा बेटा, होटल प्रबंधन की पढ़ाई को पूरा करने के बाद दुबई में रहता है, जबकि हितेश, बड़ा बेटा, कबाड़ के व्यवसाय में उसका समर्थन करता है।

एक दिन सब्जी लेने के लिए बाजार जाते समय हेमा ने उद्यम के पोस्टर को देखा जिसमें उद्यमियों को ऋण और परामर्श देने की बात लिखी हुई थी। यह जाँचने के लिए कि उसे लोन दिया जाएगा या नहीं उसने दिए गए नम्बर पर कॉल किया। फ़ोन पर उद्यम ने हेमा को पंजीकरण कराने के लिए कहा जिसे उसने यह सोचकर इनकार कर दिया की इसके लिए उसे पैसे देने पड़ेंगे। जब उसे ये पता चला की पंजीकरण के कोई पैसे नहीं लगेंगे तब उसने करवाया।

“चयन प्रक्रिया के कई दौर से गुज़रने के बाद, उद्यम ने मुझे 1,00,000 रुपये दिए जिसका उपयोग मैंने व्यवसाय को बढ़ाने के लिए किया। इसके कारण मैंने बड़े अनुबंध, सरकारी टेंडर आदि लेना शुरू किया। आज मैं खुश और संतुष्ट हूं क्योंकि इसने मुझे पहचान, कार और धन सहित सब कुछ दिया है। पहचान ने मुझे अधिक काम पाने में भी मदद की है। आज कभी कभी मैं पांच लाख की कीमत तक का कबाड़ इकट्ठा करती हूँ।”

यह पूछे जाने पर कि वह खुद को अब से कुछ साल बाद कहाँ देखती हैं, हेमा कहती हैं, ‘”मेरे पास दृढ़ संकल्प है, लेकिन परामर्श की कमी थी। उद्यम ने यह महत्वपूर्ण अंतर भर दिया है।” धन और पहचान के अलावा, उद्यम द्वारा प्रदान की गई मेंटरशिप ने उनके व्यवसाय को बेहतर बना दिया है। अब से कुछ साल बाद मैं भंडारण के लिए स्थान को बढ़ाकर और अधिक लोगों को काम पर रख कर मैं अपने व्यवसाय को फैलाना चाहूँगी।”